स्वामी विवेकानंद भारतीय ही नहीं दुनिया भर में स्वामी विवेकानंद का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता हैं. एक युगपुरुष जिन्होंने भारतीयों को भारत वासी होने पर गर्व करना सीखाया तथा समझाया कि क्यों भारतीय संस्कृति दुनियां से बढकर हैं सर्वश्रेष्ठ हैं. भारतीय संस्कृति के प्रसारक तथा युवाओ के लिए प्रेरणा का स्रोत विवेकानंद जी का जन्म १२ जनवरी १८६३ को हुआ था. उनकी जन्मदिन को हर साल राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में माने है. क्योकि आज के युवाओ को विवेकानन्द से जीवन में सीखकर उनका अनुसरण करना चाहिए.
विवेकानंद जी का अपना वास्तविक नाम नरेंद्र दत्त था. ये बचपन से ही बुद्धिमान और होशियार थे. हर कार्य में ये सबसे आगे रहते थे. इनमे भगवान् की भक्ति के प्रति प्रबल भावना थी. नरेंद्र के पिता विश्वनाथ जी नरेंद्र को अंग्रेजी भाषा की सभ्यता पढ़ाने चाह रहे थे. 21 साल की उम्र में नरेन्द्र ने अपने पिता को खो दिया. और परिवार का सारा भार अब नरेन्द्र पर आ गया था.
घर की स्थिति ख़राब चल रही थी. पर नरेंद्र भारतीय संस्कृति में आज हम जिस प्रकार अतिथि को भगवान् मानते है. उसी भांति विवेकांनद अतिथियों को भगवान् मानकर खुद भूखे रहकर उन्हें भोजन कराते थे.
नरेंद्र ने विवाह न करके सन्यास धारण करने का फैसला लिया तथा उस समय चर्चित रामकृष्ण परमहंस जी के पास गए और अपना शिष्य बनाने के लिए प्रार्थना की.
परमहंस ने नरेंद्र को अपना शिष्य बना लिया तथा नरेंद्र को विवेकांनद का नाम दिया. नरेंद्र को ज्ञान में बहुत आनंद आता था. इसलिए उनका नाम विवेकांनद दिया. जिसका अर्थ ज्ञान में आनंद होता है.
सन्यास के बाद विवेकानंद ने अपना जीवन अपने गुरूजी को समर्पित कर दिया. वे हमेशा उनकी सेवा किया करते थे. १८९३ में शिकागो में हुए धर्म सम्मेलन में विवेकांनद ने देश का नेतृत्व किया तथा भारतीय वेशभूषा में जाकर भारतीय संस्कृति का मान सम्मान बढ़ाया.
4 जुलाई 1902 को दिव्य आत्मा ने इस संसार को छोड़ दिया.विवेकानंद हमारे लिए आदर्श और मार्गदर्शक है. हमें विवेकानंद पर और हमारी भारतीय संस्कृति पर गर्व है.
संत और समाज सुधारक स्वामी विवेकानंद जी का जन्म स्थल 1863 में भारत देश के पश्चिम बंगाल राज्य के कोलकाता शहर में 12 जनवरी के दिन पिता विश्वनाथ दत्त और माता भुवनेश्वरी देवी के परिवार में हुआ था।
इनके बचपन का नाम नरेंद्र नाथ दत्ता था। स्वामी विवेकानंद ने अपनी पढ़ाई कोलकाता मेट्रोपॉलिटन स्कूल और प्रेसीडेंसी कॉलेज, कोलकाता से पूरी की थी।
आज के टाइम में स्वामी विवेकानंद एक ऐसा नाम है जो किसी भी प्रकार के परिचय के मोहताज नहीं है। यह एक ऐसी पर्सनालिटी थे, जिन्होंने वेस्टर्न कल्चर को मानने वाले लोगों को हिंदू धर्म के बारे में बताया और उन्हें हिंदू धर्म के गूढ़ रहस्यो के बारे में भी जानकारी दी।
स्वामी विवेकानंद ने साल 1893 में आयोजित शिकागो धर्म सम्मेलन में हिंदुत्व को रिप्रेजेंट किया था और इसी धर्म सम्मेलन के बाद स्वामी विवेकानंद को अमेरिका में कई लोग जानने लगे।
स्वामी विवेकानंद जी की याद में हर साल 12 जनवरी को इंडिया में नेशनल यूथ डे मनाया जाता है। इस दिन स्कूलों और कॉलेजों में भी विवेकानंद जी के ऊपर आधारित अलग-अलग सेमिनार आयोजित होते हैं।
स्वामी विवेकानंद जी ने अपने ओजस्वी भाषण से सिर्फ इंडिया के ही नहीं बल्कि दुनिया के भी युवा वर्ग को प्रोत्साहित किया और उनके अंदर आत्मविश्वास की अलख जगाई। इनके द्वारा स्थापित रामकृष्ण मिशन आज भी अपना काम कर रहा है।
रामकृष्ण मिशन के अलावा इन्होंने वेदांता सोसाइटी ऑफ न्यूयॉर्क की भी स्थापना की थी। इनके गुरु का नाम रामकृष्ण था। यह हिंदू धर्म के बहुत ही बड़े प्रचारक थे।
विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में विश्व नाथ के यहाँ हुआ था. उनके बचपन का नाम नरेंद्र नाथ दत्त था. 1880 में उनकी भेंट रामकृष्ण परमहंस से हुई, जिन्होंने विवेकानंद को ईश्वरीय अनुभूति कराई, विवेकानंद उनके शिष्य बन गये.
विवेकानंद एक धर्म प्रचारक के रूप में
शिकागो विश्व धर्म सम्मेलन में भाग लेना- 1893 में अमेरिका के शिकागो नामक नगर में एक विश्व धर्म सम्मेलन आयोजित किया गया. स्वामी विवेकानंद ने इस सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व किया. उन्होंने इस सम्मेलन में हिन्दू धर्म की विशालता और उदारता पर प्रकाश डाला और हिन्दू धर्म की श्रेष्ठता स्थापित कर दी.
उन्होंने ओजस्वी वाणी में भारतीय संस्कृति की सहिष्णुता, सभी धर्मों के प्रति आदर भाव तथा हिन्दू धर्म की विशेषताओं पर प्रवचन देकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया.
न्यूयार्क के एक प्रमुख पत्र न्यूयार्क हेराल्ड ने स्वामी विवेकानंद के पांडित्यपूर्ण भाषण की प्रशंसा करते हुए लिखा था कि विश्व धर्म सम्मेलन में विवेकानंद की दिव्य मूर्ति ही छाई हुई हैं.
उनके प्रवचन सुनने के बाद यह अनुभव होता कि भारत जैसे विद्वान् देश में ईसाई पादरियों को भेजना कितनी मुर्खता की बात हैं. इस प्रकार विवेकानंद की ख्याति सम्पूर्ण अमेरिका में फ़ैल गई.
रामकृष्ण मिशन की स्थापना- अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस की शिक्षाओं के प्रचार के लिए स्वामी विवेकानंद ने 5 मई 1897 को कलकत्ता के निकट वेल्लूर नामक स्थान पर रामकृष्ण मिशन की स्थान की. इसका उद्देश्य मानव जाति की सेवा करना हैं.
मिशन ने संसार के अनेक भागों में अपनी शाखाएं स्थापित की हैं, जो उपदेश, शिक्षा, चिकित्सा आदि कार्य करती हैं. तथा अकाल बाढ़, भूकम्प तथा संक्रामक रोगों से पीड़ित लोगों की सहायता करती हैं. 39 वर्ष की अल्पायु में 1902 ई में स्वामी विवेकानंद की मृत्यु हो गई.
स्वामी विवेकानंद के सामाजिक सुधार-
जाति प्रथा और छुआछूत का विरोध- स्वामी विवेकानंद प्रगतिशील विचारों के समर्थक थे. उन्होंने जाति प्रथा, छुआछूत तथा ऊँच नीच के भेदभाव का विरोध किया और सामाजिक समानता पर बल दिया.
उन्होंने उच्च जाति के लोगों एवं अमीर वर्ग के लोगों द्वारा निम्न जाति के लोगों पर अत्याचार करने तथा उनका शोषण करने की कटु आलोचना की.
दलित उद्धार- स्वामी विवेकानंद ने दलित उद्धार पर बल दिया. उन्होंने दीन दुखियों, दलितों आदि के कष्टों को दूर करने तथा उनके जीवन स्तर को उन्नत करने पर बल दिया. उनका कहना था कि दलितों के उत्थान के बिना देश का पुनरुत्थान असम्भव हैं.
डॉ रामगोपाल शर्मा ने लिखा है कि दलित उद्धार विवेकानंद के राष्ट्र निर्माण कार्यक्रम का प्रमुख अंग था. स्वामी विवेकानंद कहा करते थे कि अपने पीड़ित देशवासियों के उद्धार के पुनीत कार्य के लिए उन्हें मोक्ष खोकर नरक में जाना स्वीकार हैं.
स्त्रियों की दशा सुधारने पर बल देना- स्वामी विवेकानंद ने स्त्रियों की दशा सुधारने पर बल दिया. उनका कहना था कि नारियों की उन्नति के बिना किसी भी देश का उत्थान सम्भव नहीं हैं. उन्होंने बाल विवाह, बहु विवाह आदि का विरोध किया.
भारतीय संस्कृति तथा पाश्चात्य संस्कृति में समन्वय पर बल- स्वामी विवेकानंद भारतीयों की उन्नति हेतु भारतीय संस्कृति तथा पाश्चात्य संस्कृति में समन्वय स्थापित करना चाहते थे. उनका कहना था कि भौतिक वाद एवं आध्यात्मवाद में समन्वय स्थापित होना चाहिए. स्वामी विवेकानंद के धार्मिक सुधार
हिन्दू धर्म की श्रेष्ठता पर बल- स्वामी विवेकानंद ने हिन्दू धर्म एवं संस्कृति की श्रेष्ठता पर बल दिया. उन्होंने वेदांत धर्म का प्रचार किया और घोषित किया कि वेदांत की आध्यात्मिकता के बल पर भारत सम्पूर्ण विश्व को जीत सकता हैं. स्वामी विवेकानंद ने भारतवासियों में हिन्दू धर्म एवं संस्कृति के प्रति आस्था उत्पन्न की.
धार्मिक सहिष्णुता तथा उदारता पर बल- स्वामी विवेकानंद ने धार्मिक सहिष्णुता तथा उदारता पर बल दिया. उनका कहना था कि धर्म में दूसरे धर्मों की निंदा, सांप्रदायिकता तथा पारस्परिक विद्वेष को कोई स्थान नहीं होना चाहिए.
धर्म अनुभूति है- स्वामी विवेकानंद का कहना था कि धर्म मनुष्य के भीतर निहित देवत्व का विकास हैं. धर्म न तो पुस्तकों में है, न धार्मिक सिद्धांतों में यह केवल अनुभूति में निवास करता हैं. त्याग, सेवा और प्रेम ईश्वर की अनुभूति के लिए आवश्यक हैं. धर्म जीवन का अत्यंत स्वाभाविक तत्व हैं.
धार्मिक पाखंडों, रूढ़ियों तथा अंधविश्वासों का विरोध- स्वामी विवेकानंद ने धार्मिक पाखंडों,रूढ़ियों और अंध विश्वासों का विरोध किया. उन्होंने हिन्दू धर्म में प्रचलित छुआछूत का विरोध किया. उन्होंने हिन्दू धर्म के मूल स्वरूप पर बल दिया जिसमें जाति प्रथा, छुआछूत, ऊँच नीच के भेदभाव को कोई स्थान नहीं हैं.
दीन दुखियों की सेवा पर बल- स्वामी विवेकानंद का कहना था कि दीन दुखियों, दरिद्रों आदि की सेवा करना धर्म का प्रमुख कर्तव्य हैं. निर्धन व कमजोर वर्गों की सहायता में ईश्वर की सच्ची उपासना निहित हैं. उन्होंने दीन दुखियों तथा दरिद्र मानव को ईश्वर का रूप बताया तथा उनके लिए दरिद्रनारायण शब्द का प्रयोग किया.
राष्ट्रीय जागृति में स्वामी विवेकानंद का योगदान
स्वामी विवेकानंद भारत की राष्ट्रीयता के पोषक थे. उन्होंने भारतीयों में आत्मविश्वास की भावना पैदा की, दुर्बलता को पाप बताया और शक्ति पूजा का आह्वान किया.
विवेकानंद ने देश के युवकों का आह्वान किया, उठो जागो और तब तक न रूको जब तक कि लक्ष्य की प्राप्ति न हो. पश्चिम के अंधानुकरण की उन्होंने कटु आलोचना की.
स्वामी विवेकानंद ने देशवासियों से कहा था कि इस बात के ऊपर तुम गर्व करो कि तुम एक भारतीय हो और अभिमान के साथ यह घोषणा करो कि हम भारतीय हैं, प्रत्येक भारतीय हमारा भाई हैं. उन्होंने भारत के अतीत पर गर्व प्रकट किया और उसकी शिक्षाओं द्वारा समस्त भारतीयों को राष्ट्र की सेवा के लिए तैयार रहने का उपदेश दिया.
स्वामी विवेकानंद का मूल्यांकन
स्वामी विवेकानंद 19 वीं सदी के भारत के एक महान सुधारक दार्शनिक एवं धर्मोपदेशक थे. उन्होंने हिन्दू धर्म एवं संस्कृति की श्रेष्ठता प्रतिपादित की. उन्होंने हिन्दू धर्म एवं संस्कृति के गौरव से भारतवासियों को अवगत कराया तथा उनमें आत्मविश्वास तथा आत्मसम्मान की भावनाएं उत्पन्न की.
उन्होंने देशवासियों में देशभक्ति तथा राष्ट्रीयता की भावना का प्रसार किया तथा भारत को एक शक्तिशाली तथा गौरवशाली राष्ट्र बनाने पर बल दिया.
भारत ब्रिटिश सरकार के अधीन था. उस समय उठो जागो और आगे बढ़े तब तक नहीं रूकों जब तक कि तुम्हें लक्ष्य प्राप्त न हो जाए, जैसा संदेश देकर भारतीयों को जगाने वाले महापुरुष स्वामी विवेकानंद ही थे.
इन्होने ज्ञान एवं आध्यात्म का डंका सारी दुनिया में बजाया, आज भारत ही नहीं समूचे संसार में स्वामीजी का नाम बड़े सम्मान से लिया जाता हैं.
स्वामी विवेकानंद के बचपन का नाम नरेंद्र नाथ दत्त था. इनका जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में हुआ. इनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था जो कि प्रख्यात अटोर्नी थे.
इन्होने अपनी शिक्षा अच्छे स्कूल से की, इसके बाद इन्होने कलकत्ता के प्रसिद्ध प्रेसिडेंसी कॉलेज में दाखिला ले लिया. उस कॉलेज में पढ़ने के दौरान उनकी आध्यात्म में रुचि जाग्रत हुई.
और वे ईश्वर विश्व, मानव इत्यादि के रहस्य जान्ने के लिए व्याकुल रहे. विवेकानंद के गुरु का नाम रामकृष्ण परमहंस था.
विवेकानंद और परमहंस की पहली मुलाक़ात में प्रश्न किया कि क्या आपने ईश्वर को देखा है परमहंस ने इस सवाल पर मुस्कराते हुए कहा- हाँ मैंने ईश्वर को बिलकुल देखा है जैसे मैं तुम्हे देख रहा हूँ.
परमहंस के इस जवाब को सुनकर स्वामी जी संतुष्ट नहीं हुए बल्कि उस समय उन्होंने परमहंस को अपना गुरु मान लिया. इस घटना के बाद उन्होंने सन्यासी बनने का निर्णय किया.
स्वामी विवेकानंद ने सन्यास ग्रहण करने के बाद एक प्रिवारजक के रूप में पूरे भारत का भ्रमण किया. तभी जब राजस्थान के खेतड़ी में आए तो महाराज ने उन्हें विवेकानंद का नाम दिया.
1893 में संयुक्त राज्य अमेरिका में विश्व धर्म सम्मेलन का आयोजन हुआ तो खेतड़ी के महाराज ने इन्हें भारत के प्रतिनिधि के तौर पर शिकागो भेजा.
11 सितम्बर 1893 को इस सभा में स्वागत भाषण में स्वामी जी ने श्रोताओं को संबोधित करते हुए कहा अमेरिका के भाइयों और बहनों वैसा कहते ही तालियों की गद्गदाह्त से सदन गूंज उठा.
विश्व धर्म सभा की यह घटना उस समय की है जब भारत ब्रिटिश सत्ता के अधीन था. विश्व धर्म सभा समाप्त होने के बाद स्वामीजी ने विश्व के अनेक देशों का भ्रमण किया और 1897 में भारत लौटे तो भारत वासियों ने उनका शानदार स्वागत किया.
1 मई 1897 ई को कलकत्ता में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की. 9 दिसम्बर 1998 में कलकत्ता के निकट हुबली नदी के किनारे बेलूर मठ में स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की. स्वामीजी ने अनेक व्याख्यानों के संग्रह को रामकृष्ण मिशन ने अनेक पुस्तकों के रूप में प्रकाशित किया.
स्वामीजी ने अनेक पुस्तकों की रचना की जिसमें राजयोग, कर्मयोग, ज्ञान योग एवं भक्ति योग प्रमुख हैं. भारतीय नारियों की दशा सुधारने के लिए उन्होंने अनेक कार्य किये. उनका मानना था कि देश की प्रगति तभी संभव है जब वहां की नारियां शिक्षित हो.
नारियों के महत्व को दर्शाते हुए उन्होंने कन्या पूजन की शुरुआत की. स्वामीजी रामकृष्ण के माध्यम से लोगों की भलाई और सेवा का कार्य करते रहे.
1901-02 में कलकत्ता में प्लेग फ़ैल जाने पर उन्होंने गरीबों की सेवा की. इस कारण अपने स्वास्थ्य का भी ध्यान नहीं रख पाए और शरीर कमजोर होता गया.
अन्तः 4 जुलाई 1902 में मात्र 39 वर्ष की आयु में उनका देहांत हो गया. इस तरह मानवता के मसीहा ने मानव सेवा के लिए स्वयं की आहुति दी. 1985 में ही स्वामीजी के जन्म दिन 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में हर साल मनाते हैं.
स्वामी विवेकानंद बेलूर मठ के निर्माण कार्य और शिक्षादान के कार्य में बहुत व्यस्त थे. निरंतर भागदौड़ और कठिन श्रम करने के कारन वे अस्वस्थ हो गये थे. चिकित्सकों ने उन्हें जलवायु परिवर्तन तथा विश्राम करने के लिए जोर दिया.
विवश होकर वे दार्जिलिंग चले गये. वहा उनके स्वास्थ्य में धीरे धीरे सुधार हो रहा था. तभी उन्हें समाचार मिला कि कोलकाता में प्लेग व्यापक रूप से फ़ैल गया हैं. प्रतिदिन सैकड़ों लोगों की मृत्यु हो रही हैं. यह दुखद समाचार सुनकर क्या महाप्राण विवेकानंद स्थिर रह सकते थे.
वे तुरंत कोलकाता लौट आए और उसी दिन उन्होंने प्लेग रोग में आवश्यक सावधानी बरतने का जन आदेश दिया. अपने साथ तमाम सन्यासियों और ब्रह्मचारियों को लेकर वे रोगियों की सेवा में जुट गये. कोलकाता में भय तथा आतंक का राज्य फैला हुआ था.
स्त्री पुरुष अपने बच्चों को लेकर प्राण बचाने के उद्देश्य से भागे जा रहे थे. ब्रिटिश सरकार ने प्लेग रोग से बचाव के सम्बन्ध में कठोर नियम जारी कर दिया था. उससे लोगों में भारी असंतोष था.
इस परिस्थति का सामना करने की भारी चुनौती स्वामी जी के सामने थी. इस कार्य में कितने धन की आवश्यकता होगी और वह कहा से आएगा, इस बात की चिंता करते हुए किसी गुरुभाई ने स्वामी जी से प्रश्न किया.
स्वामी जी रूपये कहा से आएगे. स्वामी जी ने तत्काल उत्तर दिया. यदि जरूरत पड़ी तो मठ के लिए खरीदी गई जमीन भी बेच डालेगे. हजारों स्त्री पुरुष हमारी आँखों के सामने असहनीय दुःख सहन करेगे और हम मठ में रहेगे.
हम सन्यासी है आवश्यकता होगी तो फिर वृक्षों के नीचे रहेगे, भिक्षा द्वारा प्राप्त अन्न वस्त्र हमारे लिए पर्याप्त होगा.
स्वामी जी ने एक बड़ी जमीन किराए पर ली और वहां कुटियाँ का निर्माण किया. जाति, वर्ण का भेद छोड़ प्लेग के असहाय मरीजों को वहां लाकर उत्साही कार्यकर्ता सेवा कार्य में रत हुए. स्वामी जी भी वहां उपस्थित रहकर सेवा कार्य करने लगे.
शहर की गंदगी साफ़ करना, औषधियों का वितरण करना, दरिद्र नारायणों की अति उत्साह से सेवा करने में सभी कार्यकर्ता मन से लग गये. यत्र जीव तत्र शिव मंत्र के ऋषि विवेकानंद अपनी सेहत की परवाह न करते हुए स्वदेशवासियों को शिक्षा देने लगे कि नर को नारायण मान कर सेवा करना मानव धर्म हैं.
स्वामी विवेकानंद ने राजा राम मोहन राय तथा स्वामी दयानंद सरस्वती कि सिद्धांतों की व्याख्या करके हिंदू धर्म को पाश्चात्य ज्ञान से उच्च बताया. स्वामी जी का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता के दंत परिवार में हुआ.
स्वामी विवेकानंद के बचपन का नाम नरेंद्र नाथ दत था. स्वामी विवेकानंद के गुरु का नाम रामकृष्ण परमहंस था. इनकी शिक्षा अंग्रेजी कॉलेज से b.a. तक हुई.
यूरोप बुद्धि वाद और उदारवाद का प्रभाव पड़ा प्रारंभ में यह ब्रह्म समाज की ओर आकर्षित हुए परंतु संतुष्टि ना मिलने पर 1881 में रामकृष्ण परमहंस से काली मंदिर दक्षिणेश्वर में भेंट की.
इन्होंने अपनी पहली भेंट में राम कृष्ण से प्रश्न किया "कि क्या आपने ईश्वर को देखा है "जवाब मिला !हां "मैंने ईश्वर को ऐसे ही देखा है जैसे तुम्हें देख रहा हूं"
जब दूसरी बार राम कृष्ण से मिले तो उन्होंने अपना दायां पैर स्वामी जी के शरीर पर रखा इस से विवेकानंद को रामकृष्ण की आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त हुई और इन्होंने रामकृष्ण को अपना गुरु माना.
रामकृष्ण परमहंस विवेकानंद जी ने आध्यात्मिक विकास ईश्वरीय दर्शन व स्वरूप की शिक्षा प्राप्त की. राम कृष्ण की मृत्यु के बाद विवेकानंद ने उनके विचारों को फैलाने तथा उनके शिष्यों की देखभाल करने का दायित्व संभाला.
शिकागो सर्वधर्म सम्मेलन 1893
1893 में आयोजित शिकागो धर्म सभा में भाग लिया इस सम्मेलन में स्वामी जी ने हिंदुत्व की पक्ष को इतने प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया की संपूर्ण विश्व में हिंदू धर्म की धूम मच गई इस विश्व यात्रा के निम्न उद्देश्य थे.
हिंदू धर्म का प्रसार व श्रेष्ठ स्थापित करना.
सारे धर्म एक ही है यह विश्व को बताना. अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त भारतीयों को भारतीय धर्म व संस्कृति की महत्व को बताना.भारतीयों द्वारा समुद्री यात्रा करने तथा विदेशियों से अन जल ग्रहण करने से धर्म भ्रष्ट होने का जोअंधविश्वास था.
उसे दूर करना .यूरोप का दौरा समाप्त कर 1900 में भारत लौटे भारत लौटने के बाद 2 वर्ष तक बीमार रहे तथा 39 वर्ष की अल्पायु में ही इस महान विभूति का 1902 को निधन हो गया.
स्वामी जी के सामाजिक सुधार:-
स्वामी जी ने मानव विकास को महत्वपूर्ण बताया था इसके लिए उन्हें नर्क में जन्म लेना भी स्वीकार था उन्होंने समाज में मानव सेवा की भावना जागृत की.
इन्होंने रूढ़िवादी अंधविश्वास अशिक्षा का विरोध किया तथा स्त्री शिक्षा पर बल दिया.
स्वामी विवेकानंद ने समाज में फैली अंधविश्वासों और छुआछूत का घोर विरोध किया इसी कारण इनका थियोसोफिकल सोसाइटी से हमेशा मतभेद बना रहा.
देश की सामाजिक तथा आर्थिक प्रगति के लिए उन्होंने आध्यात्मिकता पर बल दिया.
स्वामी विवेकानंद ने जन कल्याण के लिए संगठित प्रयासों पर बल दिया तथा समाज में हिंदुओं की हीन भावना को समाप्त करने का प्रयास किया तथा भारतीयों में पुनः आत्मविश्वास व आत्म सम्मान पैदा किया .
स्वामी जी के धार्मिक सुधार:-
- सभी धर्मों की सत्यता में विश्वास ग्रंथों में आत्म सम्मान की भावना व्यक्ति की.
- ईश्वर के साकार और निराकार दोनों रूपों की पूजा पर बल दिया तथा धार्मिक कर्मकांड स्थलों ग्रंथों आदि ईश्वर उपासना के साधन माना.
- धर्म ना तो पुस्तकों में है और ना ही सिद्धांतों में यह केवल अनुभूति में निवास करता है .
- धर्म परिवर्तन से कोई लाभ नहीं होता क्योंकि सभी धर्मों का लक्ष्य और उद्देश्य समान है.
- हमें धर्म व संस्कृति के साथ साथ पाश्चात्य शिक्षा की अच्छी बातों को भी ग्रहण करना चाहिए.
- स्वामी जी ने दीन दुखियों के ईश्वर का रूप कहा था.
स्वामी जी के राष्ट्रीय सुधार
हिंदुत्व की पुनर्स्थापना में स्वामी जी का अहम योगदान रहा. भारतीयों में सांस्कृतिक चेतना का विकास इन्होंने बड़े शानदार तरीके से किया.
संपूर्ण विकास के लिए राजनीतिक स्वतंत्रता को इन्होंने सर्वोपरि माना राजनीतिक स्वतंत्रता के बिना मानव का संपूर्ण विकास संभव नहीं है.
जनता को देश भक्ति व समाज सेवा का पाठ पढ़ाया. रामकृष्ण मिशन के माध्यम से कई चिकित्सालय अनाथालय विश्रामगृह आदि का निर्माण करवाया था.स्वामी विवेकानंद के कार्य निहित उनके आदर्श संस्कार भारतीय युवाओं के लिए विशाल प्रेरणा के स्रोत हैं.
सबसे पहले सभी देशवासियों को विवेकानंद जी के जन्म दिन के अवसर पर जयंती की हार्दिक बधाईयाँ तथा शुभकामनाएं. इस दिन राष्ट्रीय युवा दिवस भी मनाया जाता है.
विवेकानंद जी का जन्म 12 जनवरी को कलकता में हुआ था. स्वामी विवेकानंद ने अपने जीवन अनेक ऐसे कार्य किये जो हमारे लिए आज भी प्रेरणा का साधन बनाते है.
विवेकानंद जी के जीवन से प्रभावित होकर उनके जीवन से हमे आज भी सिखने को मिलता है. विवेकानंद जी के जन्मदिन के अवसर पर इस महान व्यक्ति के जन्मदिन को जयंती के रूप में हर साल मनाया जाता है.