Apr 21, 2023

 

Earth Day - 22.04.2023 - KV Chanderi

 




What is Earth Day?

Earth Day is an annual event dedicated to raising awareness and inspiring action to tackle the various environmental challenges facing our planet. This day is also a time to celebrate those who have done a lot to help the environment.

Over 193 countries celebrate Earth Day around the globe, with more people getting involved every year. In many places, Earth Day forms part of Earth Week, which is a longer period of climate awareness that includes activities and campaigns.

Did you know that Earth Day is marked by more than a billion people a year? Yes, a billion! The official Earth Day website says that “Earth Day is widely recognized as the largest secular observance in the world, marked every year as a day of action to change human behaviour and create global, national and local policy change.”

When is Earth Day 2023?

Earth Day is held on 22nd April each year. Earth Day 2023 falls on Saturday 22nd April 2023.

What is the Earth Day 2023 theme?

Each year, Earth Day has a central theme, signifying a new focus on a particular environmental concern. The Earth Day 2023 theme is 'Invest in Our Planet'. This theme is designed to persuade businesses, governments and citizens around the world of the need to invest in our planet to improve our environment and give our descendants a better and safer future.

How can we celebrate Earth Day 2023?

Earth Day is celebrated in many ways across the world. Here are some ideas for how to celebrate Earth Day:

  • Volunteer: Millions of people will take part in Earth Day, and it is hoped that many will volunteer to improve the environments where they live. This could involve anything from cleaning up litter to helping plant new trees.

  • Be an artist for the Earth: Creating art can play a huge part in capturing the public’s imagination and helping to spread the message of environmental urgency.

  • Focus on education: It's only by focusing on the next generation that the environmental fight can continue. Education about environmental challenges and individual actions we can all take, such as recycling, can all help.

  • Host or join events: Awareness events, such as street rallies and marches, will bring the causes of Earth Day to the awareness of people throughout the world.

  • Plant a tree: Planting a tree in a local park or garden is a simple but effective way to celebrate Earth Day.


Reference -




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Jan 12, 2023

 राष्ट्रीय युवा दिवस


राष्ट्रीय युवा दिवस 2023- नमस्कार दोस्तों आप सभी को युवा दिवस और स्वामी विवेकानंद की जयंती की हार्दिक बधाई. 

युवाओ के प्रेरणादायक स्वामी विवेकानंद जी की जयंती के अवसर पर हर साल 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस का उत्सव मनाया जाता है. जो हमें विवेकानंद के जीवन से सीखकर जीवन में उन्नति की तरफ इशारा करते है. इस साल 26 वा युवा दिवस मनाया जाएगा.

इस साल युवा दिवस की थीम ''यह सब दिमाग में है'' हर साल की तरह ही इस साल भी इस दिवस के अवसर पर विद्यालय में और कॉलेजों में निबंध, भाषण और कविता प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है.

किसी भी राष्ट्र के विकास और निर्माण में युवाओ की सबसे बड़ी भूमिका होती है. युवाओ के प्रेरणादायक स्वामी विवेकानंद जी की जयंती के अवसर पर हर साल 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस का उत्सव मनाया जाता है. जो हमें विवेकानंद के जीवन से सीखकर जीवन में उन्नति की तरफ इशारा करते है.

इस साल 26 वा युवा दिवस मनाया जाएगा. इस साल युवा दिवस की थीम ''यह सब दिमाग में है'' हर साल की तरह ही इस साल भी इस दिवस के अवसर पर विद्यालय में और कॉलेजों में निबंध, भाषण और कविता प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है.

भारत की जनसंख्या आज चाइना के बाद दूसरी सबसे अधिक जनसंख्या है. इसलिए भारतीय युवाओ को सही दिशा देना आवश्यक है. युवाओ को प्रेरणा देने के लिए विवेकनद सबसे बेहतरीन उदहारण है.

इस बार का युवा दिवस पांच दिवसीय आयोजित किया जाएगा. जिसका शुभारम्भ वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के द्वारा करेंगे. सभा संबोधित करते हुए मोदीजी इस कार्यक्रम का शुभारम्भ करेंगे.

इस दिवस का आयोजन युवाओ के लिए देश के केन्द्रशासित प्रदेश पुडुचेरी में किया जाएगा. इसके अगले दिन ही युवा शिखर सम्मेलन का आयोजन किया जाएगा. इन कार्यक्रमो का मुख्य उद्देश्य भारत की राष्ट्रीय एकता तथा युवाओ को जागरूक करना है.

इस दिवस के साथ ही पंच दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन भी होगा, जो 16 जनवरी तक चलेगा, जिसमे एक युवा शिखर सम्मेलन, स्वदेशी खेल जागरूकता, योग और सांस्कृतिक समारोह मुख्य समारोह शामिल किये गए है. 

युवा दिवस क्यों मनाया जाता है?

हर साल मनाया जाने वाला राष्ट्रीय युवा दिवस एक कार्यक्रम विशेष नहीं है इस कार्यक्रम के कई उद्देश्य हैं जिस कारण हर साल से एक उत्सव की तरह मनाया जाता है इसका मुख्य उद्देश्य युवाओं को सही मार्गदर्शन करना है. 

एक युवा केवल ऊर्जावान उत्साही या हर्षवर्धन खोना ही आवश्यक नहीं है बल्कि युवा में एक सकारात्मक ऊर्जा तथा मानसिक बुद्धि का सर्वांगीण विकास होना भी आवश्यक है इसीलिए भारत अपने युवाओं के भविष्य को मध्य नजर रखते हुए इस दिवस के माध्यम से उन्हें मार्गदर्शन करती है।

आज के युवा नशे कि इस जाल में फंसे हुए हैं एक नशा मुक्ति युवा क्रांति लाने में सक्षम होता है इसलिए युवाओं को नशा मुक्त करना देश का सबसे बड़ा लक्ष्य माना गया है। युवाओं के नशे में आज मोबाइल भी एक नशा बन चुका है जिसके बिना युवा इसमें को अधूरा मानता है।

आज के समाज में प्रौद्योगिकी की के विकास के साथ ही युवाओं के जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ा है जिस कारण आज युवाओं को अच्छे आदर्शों के जीवन की अनु पालना करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।

टेक्नोलॉजी के इस युग में युवा अपनी समाजवादी स्थिति को छोड़कर नकारात्मकता की ओर बढ़ रहा है इसीलिए राष्ट्रकवि यह दायित्व बनता है कि वह अपने नागरिकों को सही दिशा दें इसीलिए युवाओं को उच्च आदर्शों के पालना के लिए उत्प्रेरित किया जाता है जिससे उनका जीवन एक सही दिशा में बढ़ सके।

युवा दिवस 2023 की थीम- हर साल युवा दिवस की अलग अलग थीम निर्धारित की जाती है. इसेआप उत्सव का सन्देश भी मान सकते है. हम आपको इस दिवस के पिछले कई सालो की थीम सहित इस साल की थीम भी बताएँगे.
  • सन 2011  “सबसे पहले भारत.” थीम रखी गई थी. 
  • सन 2012 में  “विविधता में एकता का जश्न.” को थीम रखा गया.
  • सन 2013 में  “युवा शक्ति की जागरुकता.” को थीम रखा.
  • सन 2014 को “ड्रग्स मुक्त संसार के लिये युवा.” थीम रखकर युवाओ को नशामुक्ति सन्देश दिया.
  • सन  2015 में  “यंगमंच और स्वच्छ, हरे और प्रगतिशील भारत के लिये युवा.” को थीम रखा.
  • सन  2016 में  “विकास, कौशल और सद्भाव के लिए भारतीय युवा” को थीम रखा.
  • सन 2017 में  “डिजिटल इंडिया के लिए युवा” थीम राखी गई थी.
  • सन  2018 की थीम  “संकल्प से सिद्ध” को रखा गया.
  • सन  2019 में “राष्ट्र निर्माण में युवा शक्ति का इस्तेमाल” को राष्ट्रीय युवा दिवस के लिए थीम रखा.
  • सन  2020 में “वैश्विक कार्य के लिए युवाओं की भागीदारी”को थीम बनाया.
  • सन  2021 के साल  “युवा – उत्साह नए भारत का” को थीम बनाया.
  • सन  2022 की थीम - 'अंतर पीढ़ीगत एकजुटता: सभी उम्र के लिए एक दुनिया बनाना' को नई थीम बनाया गया.
  • इस साल की थीम - "यह सब दिमाग में है" को रखा गया है. तथा इसी सन्देश के साथ इस दिवस का आयोजन किया जाएगा.



  • स्वामी विवेकानंद  भारतीय ही नहीं दुनिया  भर  में  स्वामी विवेकानंद का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता हैं. एक युगपुरुष जिन्होंने भारतीयों को भारत वासी होने पर गर्व करना सीखाया तथा समझाया कि क्यों भारतीय संस्कृति दुनियां से बढकर हैं सर्वश्रेष्ठ हैं. भारतीय संस्कृति के प्रसारक तथा युवाओ के लिए प्रेरणा का स्रोत विवेकानंद जी का जन्म १२ जनवरी १८६३ को हुआ था. उनकी जन्मदिन को हर साल राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में माने है. क्योकि आज के युवाओ को विवेकानन्द से जीवन में सीखकर उनका अनुसरण करना चाहिए.

    विवेकानंद जी का अपना वास्तविक नाम नरेंद्र दत्त था. ये बचपन से ही बुद्धिमान और होशियार थे. हर कार्य में ये सबसे आगे रहते थे. इनमे भगवान् की भक्ति के प्रति प्रबल भावना थी. नरेंद्र के पिता विश्वनाथ जी नरेंद्र को अंग्रेजी भाषा की सभ्यता पढ़ाने चाह रहे थे. 21 साल की उम्र में नरेन्द्र ने अपने पिता को खो दिया. और परिवार का सारा भार अब नरेन्द्र पर आ गया था.

    घर की स्थिति ख़राब चल रही थी. पर नरेंद्र भारतीय संस्कृति में आज हम जिस प्रकार अतिथि को भगवान् मानते है. उसी भांति विवेकांनद अतिथियों को भगवान् मानकर खुद भूखे रहकर उन्हें भोजन कराते थे. 

    नरेंद्र ने विवाह न करके सन्यास धारण करने का फैसला लिया तथा उस समय चर्चित रामकृष्ण परमहंस जी के पास गए और अपना शिष्य बनाने के लिए प्रार्थना की.

    परमहंस ने नरेंद्र को अपना शिष्य बना लिया तथा नरेंद्र को विवेकांनद का नाम दिया. नरेंद्र को ज्ञान में बहुत आनंद आता था. इसलिए उनका नाम विवेकांनद दिया. जिसका अर्थ ज्ञान में आनंद होता है.

    सन्यास के बाद विवेकानंद ने अपना जीवन अपने गुरूजी को समर्पित कर दिया. वे हमेशा उनकी सेवा किया करते थे. १८९३ में शिकागो में हुए धर्म सम्मेलन में विवेकांनद ने देश का नेतृत्व किया तथा भारतीय वेशभूषा में जाकर भारतीय संस्कृति का मान सम्मान बढ़ाया. 

    4 जुलाई 1902 को दिव्य आत्मा ने इस संसार को छोड़ दिया.विवेकानंद हमारे लिए आदर्श और मार्गदर्शक है. हमें विवेकानंद पर और हमारी भारतीय संस्कृति पर गर्व है.

    संत और समाज सुधारक स्वामी विवेकानंद जी का जन्म स्थल 1863 में भारत देश के पश्चिम बंगाल राज्य के कोलकाता शहर में 12 जनवरी के दिन पिता विश्वनाथ दत्त और माता भुवनेश्वरी देवी के परिवार में हुआ था। 

    इनके बचपन का नाम नरेंद्र नाथ दत्ता था। स्वामी विवेकानंद ने अपनी पढ़ाई कोलकाता मेट्रोपॉलिटन स्कूल और प्रेसीडेंसी कॉलेज, कोलकाता से पूरी की थी।

    आज के टाइम में स्वामी विवेकानंद एक ऐसा नाम है जो किसी भी प्रकार के परिचय के मोहताज नहीं है। यह एक ऐसी पर्सनालिटी थे, जिन्होंने वेस्टर्न कल्चर को मानने वाले लोगों को हिंदू धर्म के बारे में बताया और उन्हें हिंदू धर्म के गूढ़ रहस्यो के बारे में भी जानकारी दी। 

    स्वामी विवेकानंद ने साल 1893 में आयोजित शिकागो धर्म सम्मेलन में हिंदुत्व को रिप्रेजेंट किया था और इसी धर्म सम्मेलन के बाद स्वामी विवेकानंद को अमेरिका में कई लोग जानने लगे।

    स्वामी विवेकानंद जी की याद में हर साल 12 जनवरी को इंडिया में नेशनल यूथ डे मनाया जाता है। इस दिन स्कूलों और कॉलेजों में भी विवेकानंद जी के ऊपर आधारित अलग-अलग सेमिनार आयोजित होते हैं।

    स्वामी विवेकानंद जी ने अपने ओजस्वी भाषण से सिर्फ इंडिया के ही नहीं बल्कि दुनिया के भी युवा वर्ग को प्रोत्साहित किया और उनके अंदर आत्मविश्वास की अलख जगाई। इनके द्वारा स्थापित रामकृष्ण मिशन आज भी अपना काम कर रहा है।

    रामकृष्ण मिशन के अलावा इन्होंने वेदांता सोसाइटी ऑफ न्यूयॉर्क की भी स्थापना की थी। इनके गुरु का नाम रामकृष्ण था। यह हिंदू धर्म के बहुत ही बड़े प्रचारक थे।


    विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में विश्व नाथ के यहाँ हुआ था. उनके बचपन का नाम नरेंद्र नाथ दत्त था. 1880 में उनकी भेंट रामकृष्ण परमहंस से हुई, जिन्होंने विवेकानंद को ईश्वरीय अनुभूति कराई, विवेकानंद उनके शिष्य बन गये.

    विवेकानंद एक धर्म प्रचारक के रूप में

    शिकागो विश्व धर्म सम्मेलन में भाग लेना- 1893 में अमेरिका के शिकागो नामक नगर में एक विश्व धर्म सम्मेलन आयोजित किया गया. स्वामी विवेकानंद ने इस सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व किया. उन्होंने इस सम्मेलन में हिन्दू धर्म की विशालता और उदारता पर प्रकाश डाला और हिन्दू धर्म की श्रेष्ठता स्थापित कर दी.

    उन्होंने ओजस्वी वाणी में भारतीय संस्कृति की सहिष्णुता, सभी धर्मों के प्रति आदर भाव तथा हिन्दू धर्म की विशेषताओं पर प्रवचन देकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया. 

    न्यूयार्क के एक प्रमुख पत्र न्यूयार्क हेराल्ड ने स्वामी विवेकानंद के पांडित्यपूर्ण भाषण की प्रशंसा करते हुए लिखा था कि विश्व धर्म सम्मेलन में विवेकानंद की दिव्य मूर्ति ही छाई हुई हैं.

    उनके प्रवचन सुनने के बाद यह अनुभव होता कि भारत जैसे विद्वान् देश में ईसाई पादरियों को भेजना कितनी मुर्खता की बात हैं. इस प्रकार विवेकानंद की ख्याति सम्पूर्ण अमेरिका में फ़ैल गई.

    रामकृष्ण मिशन की स्थापना- अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस की शिक्षाओं के प्रचार के लिए स्वामी विवेकानंद ने 5 मई 1897 को कलकत्ता के निकट वेल्लूर नामक स्थान पर रामकृष्ण मिशन की स्थान की. इसका उद्देश्य मानव जाति की सेवा करना हैं.

    मिशन ने संसार के अनेक भागों में अपनी शाखाएं स्थापित की हैं, जो उपदेश, शिक्षा, चिकित्सा आदि कार्य करती हैं. तथा अकाल बाढ़, भूकम्प तथा संक्रामक रोगों से पीड़ित लोगों की सहायता करती हैं. 39 वर्ष की अल्पायु में 1902 ई में स्वामी विवेकानंद की मृत्यु हो गई.

    स्वामी विवेकानंद के सामाजिक सुधार-

    जाति प्रथा और छुआछूत का विरोध- स्वामी विवेकानंद प्रगतिशील विचारों के समर्थक थे. उन्होंने जाति प्रथा, छुआछूत तथा ऊँच नीच के भेदभाव का विरोध किया और सामाजिक समानता पर बल दिया.

    उन्होंने उच्च जाति के लोगों एवं अमीर वर्ग के लोगों द्वारा निम्न जाति के लोगों पर अत्याचार करने तथा उनका शोषण करने की कटु आलोचना की.

    दलित उद्धार- स्वामी विवेकानंद ने दलित उद्धार पर बल दिया. उन्होंने दीन दुखियों, दलितों आदि के कष्टों को दूर करने तथा उनके जीवन स्तर को उन्नत करने पर बल दिया. उनका कहना था कि दलितों के उत्थान के बिना देश का पुनरुत्थान असम्भव हैं.

    डॉ रामगोपाल शर्मा ने लिखा है कि दलित उद्धार विवेकानंद के राष्ट्र निर्माण कार्यक्रम का प्रमुख अंग था. स्वामी विवेकानंद कहा करते थे कि अपने पीड़ित देशवासियों के उद्धार के पुनीत कार्य के लिए उन्हें मोक्ष खोकर नरक में जाना स्वीकार हैं.

    स्त्रियों की दशा सुधारने पर बल देना- स्वामी विवेकानंद ने स्त्रियों की दशा सुधारने पर बल दिया. उनका कहना था कि नारियों की उन्नति के बिना किसी भी देश का उत्थान सम्भव नहीं हैं. उन्होंने बाल विवाह, बहु विवाह आदि का विरोध किया.

    भारतीय संस्कृति तथा पाश्चात्य संस्कृति में समन्वय पर बल- स्वामी विवेकानंद भारतीयों की उन्नति हेतु भारतीय संस्कृति तथा पाश्चात्य संस्कृति में समन्वय स्थापित करना चाहते थे. उनका कहना था कि भौतिक वाद एवं आध्यात्मवाद में समन्वय स्थापित होना चाहिए.
      स्वामी विवेकानंद के धार्मिक सुधार

      हिन्दू धर्म की श्रेष्ठता पर बल- स्वामी विवेकानंद ने हिन्दू धर्म एवं संस्कृति की श्रेष्ठता पर बल दिया. उन्होंने वेदांत धर्म का प्रचार किया और घोषित किया कि वेदांत की आध्यात्मिकता के बल पर भारत सम्पूर्ण विश्व को जीत सकता हैं. स्वामी विवेकानंद ने भारतवासियों में हिन्दू धर्म एवं संस्कृति के प्रति आस्था उत्पन्न की.

      धार्मिक सहिष्णुता तथा उदारता पर बल- स्वामी विवेकानंद ने धार्मिक सहिष्णुता तथा उदारता पर बल दिया. उनका कहना था कि धर्म में दूसरे धर्मों की निंदा, सांप्रदायिकता तथा पारस्परिक विद्वेष को कोई स्थान नहीं होना चाहिए.

      धर्म अनुभूति है- स्वामी विवेकानंद का कहना था कि धर्म मनुष्य के भीतर निहित देवत्व का विकास हैं. धर्म न तो पुस्तकों में है, न धार्मिक सिद्धांतों में यह केवल अनुभूति में निवास करता हैं. त्याग, सेवा और प्रेम ईश्वर की अनुभूति के लिए आवश्यक हैं. धर्म जीवन का अत्यंत स्वाभाविक तत्व हैं.

      धार्मिक पाखंडों, रूढ़ियों तथा अंधविश्वासों का विरोध- स्वामी विवेकानंद ने धार्मिक पाखंडों,रूढ़ियों और अंध विश्वासों का विरोध किया. उन्होंने हिन्दू धर्म में प्रचलित छुआछूत का विरोध किया. उन्होंने हिन्दू धर्म के मूल स्वरूप पर बल दिया जिसमें जाति प्रथा, छुआछूत, ऊँच नीच के भेदभाव को कोई स्थान नहीं हैं.

      दीन दुखियों की सेवा पर बल- स्वामी विवेकानंद का कहना था कि दीन दुखियों, दरिद्रों आदि की सेवा करना धर्म का प्रमुख कर्तव्य हैं. निर्धन व कमजोर वर्गों की सहायता में ईश्वर की सच्ची उपासना निहित हैं. उन्होंने दीन दुखियों तथा दरिद्र मानव को ईश्वर का रूप बताया तथा उनके लिए दरिद्रनारायण शब्द का प्रयोग किया.

      राष्ट्रीय जागृति में स्वामी विवेकानंद का योगदान

      स्वामी विवेकानंद भारत की राष्ट्रीयता के पोषक थे. उन्होंने भारतीयों में आत्मविश्वास की भावना पैदा की, दुर्बलता को पाप बताया और शक्ति पूजा का आह्वान किया. 

      विवेकानंद ने देश के युवकों का आह्वान किया, उठो जागो और तब तक न रूको जब तक कि लक्ष्य की प्राप्ति न हो. पश्चिम के अंधानुकरण की उन्होंने कटु आलोचना की.

      स्वामी विवेकानंद ने देशवासियों से कहा था कि इस बात के ऊपर तुम गर्व करो कि तुम एक भारतीय हो और अभिमान के साथ यह घोषणा करो कि हम भारतीय हैं, प्रत्येक भारतीय हमारा भाई हैं. उन्होंने भारत के अतीत पर गर्व प्रकट किया और उसकी शिक्षाओं द्वारा समस्त भारतीयों को राष्ट्र की सेवा के लिए तैयार रहने का उपदेश दिया.

      स्वामी विवेकानंद का मूल्यांकन

      स्वामी विवेकानंद 19 वीं सदी के भारत के एक महान सुधारक दार्शनिक एवं धर्मोपदेशक थे. उन्होंने हिन्दू धर्म एवं संस्कृति की श्रेष्ठता प्रतिपादित की. उन्होंने हिन्दू धर्म एवं संस्कृति के गौरव से भारतवासियों को अवगत कराया तथा उनमें आत्मविश्वास तथा आत्मसम्मान की भावनाएं उत्पन्न की. 

      उन्होंने देशवासियों में देशभक्ति तथा राष्ट्रीयता की भावना का प्रसार किया तथा भारत को एक शक्तिशाली तथा गौरवशाली राष्ट्र बनाने पर बल दिया.

      भारत ब्रिटिश सरकार के अधीन था. उस समय उठो जागो और आगे बढ़े तब तक नहीं रूकों जब तक कि तुम्हें लक्ष्य प्राप्त न हो जाए, जैसा संदेश देकर भारतीयों को जगाने वाले महापुरुष स्वामी विवेकानंद ही थे.


      इन्होने ज्ञान एवं आध्यात्म का डंका सारी दुनिया में बजाया, आज भारत ही नहीं समूचे संसार में स्वामीजी का नाम बड़े सम्मान से लिया जाता हैं.

      स्वामी विवेकानंद के बचपन का नाम नरेंद्र नाथ दत्त था. इनका जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में हुआ. इनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था जो कि प्रख्यात अटोर्नी थे.

      इन्होने अपनी शिक्षा अच्छे स्कूल से की, इसके बाद इन्होने कलकत्ता के प्रसिद्ध प्रेसिडेंसी कॉलेज में दाखिला ले लिया. उस कॉलेज में पढ़ने के दौरान उनकी आध्यात्म में रुचि जाग्रत हुई.

      और वे ईश्वर विश्व, मानव इत्यादि के रहस्य जान्ने के लिए व्याकुल रहे. विवेकानंद के गुरु का नाम रामकृष्ण परमहंस था. 

      विवेकानंद और परमहंस की पहली मुलाक़ात में प्रश्न किया कि क्या आपने ईश्वर को देखा है परमहंस ने इस सवाल पर मुस्कराते हुए कहा- हाँ मैंने ईश्वर को बिलकुल देखा है जैसे मैं तुम्हे देख रहा हूँ.

      परमहंस के इस जवाब को सुनकर स्वामी जी संतुष्ट नहीं हुए बल्कि उस समय उन्होंने परमहंस को अपना गुरु मान लिया. इस घटना के बाद उन्होंने सन्यासी बनने का निर्णय किया.

      स्वामी विवेकानंद ने सन्यास ग्रहण करने के बाद एक प्रिवारजक के रूप में पूरे भारत का भ्रमण किया. तभी जब राजस्थान के खेतड़ी में आए तो महाराज ने उन्हें विवेकानंद का नाम दिया.

      1893 में संयुक्त राज्य अमेरिका में विश्व धर्म सम्मेलन का आयोजन हुआ तो खेतड़ी के महाराज ने इन्हें भारत के प्रतिनिधि के तौर पर शिकागो भेजा.

      11 सितम्बर 1893 को इस सभा में स्वागत भाषण में स्वामी जी ने श्रोताओं को संबोधित करते हुए कहा अमेरिका के भाइयों और बहनों वैसा कहते ही तालियों की गद्गदाह्त से सदन गूंज उठा.

      विश्व धर्म सभा की यह घटना उस समय की है जब भारत ब्रिटिश सत्ता के अधीन था. विश्व धर्म सभा समाप्त होने के बाद स्वामीजी ने विश्व के अनेक देशों का भ्रमण किया और 1897 में भारत लौटे तो भारत वासियों ने उनका शानदार स्वागत किया.

      1 मई 1897 ई को कलकत्ता में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की. 9 दिसम्बर 1998 में कलकत्ता के निकट हुबली नदी के किनारे बेलूर मठ में स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की. स्वामीजी ने अनेक व्याख्यानों के संग्रह को रामकृष्ण मिशन ने अनेक पुस्तकों के रूप में प्रकाशित किया.

      स्वामीजी ने  अनेक पुस्तकों की रचना की जिसमें राजयोग, कर्मयोग, ज्ञान योग एवं भक्ति योग प्रमुख हैं. भारतीय नारियों की दशा सुधारने के लिए उन्होंने अनेक कार्य किये. उनका मानना था कि देश की प्रगति तभी संभव है जब वहां की नारियां शिक्षित हो.

      नारियों के महत्व को दर्शाते हुए उन्होंने कन्या पूजन की शुरुआत की. स्वामीजी रामकृष्ण के माध्यम से लोगों की भलाई और सेवा का कार्य करते रहे.

      1901-02 में कलकत्ता में प्लेग फ़ैल जाने पर उन्होंने गरीबों की सेवा की. इस कारण अपने स्वास्थ्य का भी ध्यान नहीं रख पाए और शरीर कमजोर होता गया.

      अन्तः 4 जुलाई 1902 में मात्र 39 वर्ष की आयु में उनका देहांत हो गया. इस तरह मानवता के मसीहा ने मानव सेवा के लिए स्वयं की आहुति दी. 1985 में ही स्वामीजी के जन्म दिन 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में हर साल मनाते हैं.
      स्वामी विवेकानंद बेलूर मठ के निर्माण कार्य और शिक्षादान के कार्य में बहुत व्यस्त थे. निरंतर भागदौड़ और कठिन श्रम करने के कारन वे अस्वस्थ हो गये थे. चिकित्सकों ने उन्हें जलवायु परिवर्तन तथा विश्राम करने के लिए जोर दिया.
      विवश होकर वे दार्जिलिंग चले गये. वहा उनके स्वास्थ्य में धीरे धीरे सुधार हो रहा था. तभी उन्हें समाचार मिला कि कोलकाता में प्लेग व्यापक रूप से फ़ैल गया हैं. प्रतिदिन सैकड़ों लोगों की मृत्यु हो रही हैं. यह दुखद समाचार सुनकर क्या महाप्राण विवेकानंद स्थिर रह सकते थे.

      वे तुरंत कोलकाता लौट आए और उसी दिन उन्होंने प्लेग रोग में आवश्यक सावधानी बरतने का जन आदेश दिया. अपने साथ तमाम सन्यासियों और ब्रह्मचारियों को लेकर वे रोगियों की सेवा में जुट गये. कोलकाता में भय तथा आतंक का राज्य फैला हुआ था.

      स्त्री पुरुष अपने बच्चों को लेकर प्राण बचाने के उद्देश्य से भागे जा रहे थे. ब्रिटिश सरकार ने प्लेग रोग से बचाव के सम्बन्ध में कठोर नियम जारी कर दिया था. उससे लोगों में भारी असंतोष था.

      इस परिस्थति का सामना करने की भारी चुनौती स्वामी जी के सामने थी. इस कार्य में कितने धन की आवश्यकता होगी और वह कहा से आएगा, इस बात की चिंता करते हुए किसी गुरुभाई ने स्वामी जी से प्रश्न किया.

      स्वामी जी रूपये कहा से आएगे. स्वामी जी ने तत्काल उत्तर दिया. यदि जरूरत पड़ी तो मठ के लिए खरीदी गई जमीन भी बेच डालेगे. हजारों स्त्री पुरुष हमारी आँखों के सामने असहनीय दुःख सहन करेगे और हम मठ में रहेगे.

      हम सन्यासी है आवश्यकता होगी तो फिर वृक्षों के नीचे रहेगे, भिक्षा द्वारा प्राप्त अन्न वस्त्र हमारे लिए पर्याप्त होगा. 

      स्वामी जी ने एक बड़ी जमीन किराए पर ली और वहां कुटियाँ का निर्माण किया. जाति, वर्ण का भेद छोड़ प्लेग के असहाय मरीजों को वहां लाकर उत्साही कार्यकर्ता सेवा कार्य में रत हुए. स्वामी जी भी वहां उपस्थित रहकर सेवा कार्य करने लगे.

      शहर की गंदगी साफ़ करना, औषधियों का वितरण करना, दरिद्र नारायणों की अति उत्साह से सेवा करने में सभी कार्यकर्ता मन से लग गये. यत्र जीव तत्र शिव मंत्र के ऋषि विवेकानंद अपनी सेहत की परवाह न करते हुए स्वदेशवासियों को शिक्षा देने लगे कि नर को नारायण मान कर सेवा करना मानव धर्म हैं.

      स्वामी विवेकानंद ने राजा राम मोहन राय तथा स्वामी दयानंद सरस्वती कि सिद्धांतों की व्याख्या करके हिंदू धर्म को पाश्चात्य ज्ञान से उच्च बताया. स्वामी जी का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता के दंत परिवार में हुआ. 

      स्वामी विवेकानंद के बचपन का नाम नरेंद्र नाथ दत था. स्वामी विवेकानंद के गुरु का नाम रामकृष्ण परमहंस था. इनकी शिक्षा अंग्रेजी कॉलेज से b.a. तक हुई.

      यूरोप बुद्धि वाद और उदारवाद का प्रभाव पड़ा प्रारंभ में यह ब्रह्म समाज की ओर आकर्षित हुए परंतु संतुष्टि ना मिलने पर 1881 में रामकृष्ण परमहंस से काली मंदिर दक्षिणेश्वर में भेंट की.

      इन्होंने अपनी पहली भेंट में राम कृष्ण से प्रश्न किया "कि क्या आपने ईश्वर को देखा है "जवाब मिला !हां "मैंने ईश्वर को ऐसे ही देखा है जैसे तुम्हें देख रहा हूं"

      जब दूसरी बार राम कृष्ण से मिले तो उन्होंने अपना दायां पैर स्वामी जी के शरीर पर रखा इस  से विवेकानंद को रामकृष्ण की आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त हुई और इन्होंने रामकृष्ण को अपना गुरु माना.

      रामकृष्ण परमहंस विवेकानंद जी ने आध्यात्मिक विकास ईश्वरीय दर्शन व स्वरूप की शिक्षा प्राप्त की. राम कृष्ण की मृत्यु के बाद विवेकानंद ने उनके विचारों को फैलाने तथा उनके शिष्यों की देखभाल करने का दायित्व संभाला.

      शिकागो सर्वधर्म सम्मेलन 1893

      1893 में आयोजित शिकागो धर्म सभा में भाग लिया इस सम्मेलन में स्वामी जी ने हिंदुत्व की पक्ष को इतने प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया की संपूर्ण विश्व में हिंदू धर्म की धूम मच गई इस विश्व यात्रा के निम्न उद्देश्य थे.
      हिंदू धर्म का प्रसार व श्रेष्ठ स्थापित करना.

      सारे धर्म एक ही है यह विश्व को बताना. अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त भारतीयों को भारतीय धर्म व संस्कृति की महत्व को बताना.भारतीयों द्वारा समुद्री यात्रा करने तथा विदेशियों से अन जल ग्रहण करने से धर्म भ्रष्ट होने का जोअंधविश्वास था.

      उसे दूर करना .यूरोप का दौरा समाप्त कर 1900 में भारत लौटे भारत लौटने के बाद 2 वर्ष तक बीमार रहे तथा 39 वर्ष की अल्पायु में ही इस महान विभूति का 1902 को निधन हो गया.

      स्वामी जी के सामाजिक सुधार:-

      स्वामी जी ने मानव विकास को महत्वपूर्ण बताया था इसके लिए उन्हें नर्क में जन्म लेना भी स्वीकार था उन्होंने समाज में मानव सेवा की भावना जागृत की.

      इन्होंने रूढ़िवादी अंधविश्वास अशिक्षा का विरोध किया तथा स्त्री शिक्षा पर बल दिया.
      स्वामी विवेकानंद ने समाज में फैली अंधविश्वासों और छुआछूत का घोर विरोध किया इसी कारण इनका थियोसोफिकल सोसाइटी से हमेशा मतभेद बना रहा.

      देश की सामाजिक तथा आर्थिक प्रगति के लिए उन्होंने आध्यात्मिकता पर बल दिया.
      स्वामी विवेकानंद ने जन कल्याण के लिए संगठित प्रयासों पर बल दिया तथा  समाज में हिंदुओं की हीन भावना को समाप्त करने का प्रयास किया तथा भारतीयों में पुनः आत्मविश्वास व आत्म सम्मान पैदा किया .

      स्वामी जी के धार्मिक सुधार:-

      1. सभी धर्मों की सत्यता में विश्वास ग्रंथों में आत्म सम्मान की भावना व्यक्ति की.
      2. ईश्वर के साकार और निराकार दोनों रूपों की पूजा पर बल दिया तथा धार्मिक कर्मकांड स्थलों ग्रंथों आदि ईश्वर उपासना के साधन माना.
      3. धर्म ना तो पुस्तकों में है और ना ही सिद्धांतों में यह केवल अनुभूति में निवास करता है .
      4. धर्म परिवर्तन से कोई लाभ नहीं होता क्योंकि सभी धर्मों का लक्ष्य और उद्देश्य समान है.
      5. हमें धर्म व संस्कृति के साथ साथ पाश्चात्य शिक्षा की अच्छी बातों को भी ग्रहण करना चाहिए.
      6. स्वामी जी ने दीन दुखियों के ईश्वर का रूप कहा था.
      स्वामी जी के राष्ट्रीय सुधार

      हिंदुत्व की पुनर्स्थापना में स्वामी जी का अहम योगदान रहा. भारतीयों में सांस्कृतिक चेतना का विकास इन्होंने बड़े शानदार तरीके से किया.

      संपूर्ण विकास के लिए राजनीतिक स्वतंत्रता को इन्होंने सर्वोपरि माना राजनीतिक स्वतंत्रता के बिना मानव का संपूर्ण विकास संभव नहीं है.

      जनता को देश भक्ति व समाज सेवा का पाठ पढ़ाया. रामकृष्ण मिशन के माध्यम से कई चिकित्सालय अनाथालय विश्रामगृह आदि का निर्माण करवाया था.स्वामी विवेकानंद के कार्य निहित उनके आदर्श संस्कार भारतीय युवाओं के लिए विशाल प्रेरणा के स्रोत हैं.

      सबसे पहले सभी देशवासियों को विवेकानंद जी के जन्म दिन के अवसर पर जयंती की हार्दिक बधाईयाँ तथा शुभकामनाएं. इस दिन राष्ट्रीय युवा दिवस भी मनाया जाता है.

      विवेकानंद जी का जन्म 12 जनवरी को कलकता में हुआ था. स्वामी विवेकानंद ने अपने जीवन अनेक ऐसे कार्य किये जो हमारे लिए आज भी प्रेरणा का साधन बनाते है.

      विवेकानंद जी के जीवन से प्रभावित होकर उनके जीवन से हमे आज भी सिखने को मिलता है. विवेकानंद जी के जन्मदिन के अवसर पर इस महान व्यक्ति के जन्मदिन को जयंती के रूप में हर साल मनाया जाता है.

    Jun 5, 2022

    विश्व पर्यावरण दिवस

    विश्व पर्यावरण दिवस की स्थापना 1972 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा मानव पर्यावरण पर स्टॉकहोम सम्मेलन (5-16 जून 1972) में की गई थी, जो मानव अंतःक्रियाओं और पर्यावरण के एकीकरण पर चर्चा के परिणामस्वरूप हुई थी। दो साल बाद, 1974 में "केवल एक पृथ्वी" विषय के साथ पहला WED आयोजित किया गया था।

    विश्व पर्यावरण दिवस ( WED ) प्रतिवर्ष 5 जून को मनाया जाता है और पर्यावरण की सुरक्षा के लिए जागरूकता और कार्रवाई को प्रोत्साहित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र का प्रमुख माध्यम है । पहली बार 1973 में आयोजित किया गया, यह समुद्री प्रदूषण , अधिक जनसंख्या , ग्लोबल वार्मिंग , स्थायी खपत और वन्यजीव अपराध जैसे पर्यावरणीय मुद्दों पर जागरूकता बढ़ाने के लिए एक मंच रहा है। विश्व पर्यावरण दिवस सार्वजनिक पहुंच के लिए एक वैश्विक मंच है , जिसमें सालाना 143 से अधिक देशों की भागीदारी होती है।


    2022 के लिए विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "केवल एक पृथ्वी" है और इस कार्यक्रम की मेजबानी स्वीडन द्वारा की जा रही है।

    Dec 17, 2021

                                                             विजय दिवस


    1971 का भारत-पाक युद्ध उपमहाद्वीप के इतिहास में एक निर्णायक क्षण था, जिसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश बना. इसने सेना, वायु सेना और नौसेना सहित भारतीय सशस्त्र बलों की प्रगति की स्थापना की. युद्ध 3 दिसंबर 1971 को उस समय शुरू हुआ था, जब पूर्वी पाकिस्तान में स्वतंत्रता के लिए संघर्ष चल रहा था. यह युद्ध 13 दिन बाद 16 दिसंबर को पाकिस्तानी सेना के बिना शर्त आत्मसमर्पण के साथ समाप्त हो गया. बांग्लादेश आजाद हुआ. तब से इस दिन को भारत और बांग्लादेश में विजय दिवस (Vijay Diwas) के रूप में मनाया जाता है.


    16 दिसंबर 1971, आधुनिक हथियारों और सैन्य साजोसामान से लैस पाकिस्तान के 93,000 सैनिकों ने भारतीय सेना के अदम्य साहस और वीरता के आगे घुटने टेक दिए थे और इसी के साथ ही दुनिया के मानचित्र में बांग्लादेश नाम से एक नए देश का उदय हुआ।भारत की ओर से पाकिस्तान की इतनी भारी-भरकम फौज का आत्मसमर्पण कराना आसान काम नहीं था। पाकिस्तानी फौज के कमांडर जनरल नियाजी को मनाने की तैयारी भारतीय सेना के पूर्वी कमान के स्टाफ ऑफिसर मेजर जनरल जेएफआर जैकब को दी गई थी।

    वह जैकब ही थे जिन्हें मानेकशॉ ने आत्मसमर्पण की व्यवस्था करने ढाका भेजा था। उन्होंने ही जनरल नियाजी से बात कर उन्हें हथियार डालने के लिए राजी किया था। जैकब भारतीय सेना के यहूदी योद्धा थे। जब अप्रैल 1071  में बांग्लादेश से भारत आने वाले शरणार्थियों की तादाद इतनी बढ़ गई कि सीमावर्ती राज्यों ने अपने हाथ खड़े कर दिए तब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सेना प्रमुख जनरल सैम मानेकशॉ को अपने ऑफिस बुलाया। 

    बैठक के बाद मानेकशॉ ने अप्रैल के शुरू में पूर्वी कमान के स्टाफ ऑफिसर मेजर जनरल जेएफआर जैकब को फोन कर कहा कि बांग्लादेश में घुसने की तैयारी करिए क्योंकि सरकार चाहती है कि हम वहां तुरंत हस्तक्षेप करें। जेएफआर जैकब ने मानेकशॉ के बताने की कोशिश की कि हमारे पास पर्वतीय डिवीजन हैं, हमारे पास कोई पुल नहीं हैं और मानसून भी शुरू होने वाला है। हमारे पास बांग्लादेश में घुसने का सैन्य तंत्र और आधारभूत सुविधाएं नहीं हैं।

    जैकब ने कहा कि अगर हम वहां घुसते हैं तो यह पक्का है कि हम वहां फंस जाएंगे। इसलिए उन्होंने जनरल मानेकशॉ से कहा कि इसे 15 नवंबर तक स्थगित किया जाए तब तक शायद जमीन पूरी तरह से सूख जाए। जनरल मानेकशा ने तत्काल इसकी जानकारी इंदिरा गांधी को दी और कहा कि हम पूर्वी पाकिस्तान में सैन्य कार्रवाई को बरसात के बाद करेंगे। जिसके बाद भारतीय सेना को अपनी तैयारियों को पूरा करने के लिए पर्याप्त समय भी मिल गया।  जैकब के नेतृत्व में भारतीय सेना ढाका की तरफ आगे बढ़ी। 13 दिसंबर को सेना प्रमुख जनरल मानेकशॉ के आदेश के बाद तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान के सभी शहरों पर भारतीय सेना ने कब्जा कर लिया।

    16 दिसंबर को मानेकशॉ ने फोन कर जैकब से कहा कि ढाका जाकर पाकिस्तानी सेना के आत्मसमर्पण की तैयारी करवाइए। जिसके बाद जैकब ढाका पहुंचे तो उनकी कार पर मुक्तिवाहिनी के सैनिकों ने हमला बोल दिया क्योंकि वह पाकिस्तानी सेना के अधिकारी की कार में सवार थे लेकिन जब उन्होंने उतरकर अपना परिचय दिया तब वे चले गए।

    ढाका में मौजूद पाकिस्तानी सेना के जनरल नियाजी ने पहले तो आत्मसमर्पण करने से मना कर दिया। भारतीय सेना ने कहा कि पाकिस्तानी सैनिकों और आपके परिवारों के साथ से अच्छा सुलूक किया जाए और आपके साथ भी एक सैनिक जैसा ही बर्ताव किया जाएगा। 

    जब नियाजी फिर नहीं माने तब जैकब ने कहा, 'मैं आपको जवाब देने के लिए 30 मिनट देता हूं। अगर आप इसको नहीं मानते तो मैं लड़ाई फिर से शुरू करने और ढाका पर बमबारी करने का आदेश दे दूंगा।' यह कहकर वह बाहर चले गए।

    जब जैकब अंदर आए तब नियाजी आत्मसमर्पण करने को तैयार हो गए थे। जनरल नियाजी ने खुले मैदान में पिस्टल निकाली और पूर्वी कमान के लेफ्टनेंट जनरल जगजीत सिंह पूर्वी कमान के लेफ्टनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोडा पूर्वी कमान के लेफ्टनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोडा को दे दी। भीड़ नियाजी को मार डालना चाहती थी, लेकिन भारतीय सेना उन्हें जीप पर बैठाया और सुरक्षित जगह पर ले गई।

    1971 के भारत-पाक युद्ध के बारे में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य…

    1.पश्चिम पाकिस्तान के लोगों के साथ दुर्व्यवहार और पूर्वी पाकिस्तान में चुनाव परिणामों को कम करके बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम द्वारा संघर्ष छिड़ गया था. पूर्वी पाकिस्तान द्वारा आधिकारिक तौर पर अलगाव के लिए 26 मार्च 1971 को कदम आगे गया था. भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री ने अगले दिन अपने स्वतंत्रता संग्राम के लिए पूर्ण समर्थन व्यक्त किया.

    2. मीडिया ने पाकिस्तानी सेना के हाथों बंगालियों, मुख्य रूप से हिंदुओं के खिलाफ व्यापक नरसंहार की सूचना दी थी, जिसने लगभग 10 मिलियन लोगों को पड़ोसी भारत में पलायन करने के लिए मजबूर किया था. भारत ने बंगाली शरणार्थियों के लिए अपनी सीमाएँ खोल दीं.

    3. भारत-पाक युद्ध प्रभावी रूप से उत्तर-पश्चिमी भारत के हवाई क्षेत्रों में पाकिस्तान वायु सेना (पीएएफ) द्वारा पूर्वव्यापी हवाई हमलों के बाद शुरू हुआ, जिसमें आगरा अपने ऑपरेशन चंगेज़ खान के हिस्से के रूप में शामिल था. ताजमहल  को दुश्मन के विमान से छुपाने के लिए टहनियों और पत्तियों का उपयोग कर ढका गया था.

    4. जवाब में भारतीय वायु सेना ने पश्चिमी मोर्चे में लगभग 4000 सामरिक उड़ानें की और पूर्व में दो हजार के करीब उड़ानें भरीं. जबकि, पाकिस्तान एयरफोर्स दोनों मोर्चों पर लगभग 2800 और 30 सामरिक उड़ानें ही कर सका था. IAF ने युद्ध के अंत तक पाकिस्तान में आगे के हवाई ठिकानों पर छापे मारना जारी रखा.

    5. भारतीय नौसेना के पश्चिमी नौसेना कमान ने 4-5 दिसंबर की रात कोडनाम ट्राइडेंट के तहत कराची बंदरगाह पर एक आश्चर्यजनक हमला किया.

    6. पाकिस्तान ने भी पश्चिमी मोर्चे पर अपने सैनिक जुटा लिए थे. भारतीय सेना ने जवाबी कार्रवाई की और कई हजार किलोमीटर पाकिस्तानी क्षेत्र पर कब्जा कर लिया.

    7. पाकिस्तान ने लगभग 8000 मृतकों और 25,000 अधिकतम घायलों के साथ हताहत का सामना किया, जबकि, भारत ने 3000 सैनिकों को खो दिया और 12,000 घायल हो गए.

    8. पूर्वी पाकिस्तान में मुक्ति बाहिनी गुरिल्लाओं ने पूर्व में पाकिस्तानी सैनिकों के खिलाफ लड़ने के लिए भारतीय बलों के साथ हाथ मिलाया. उन्होंने भारतीय सेना से हथियार और प्रशिक्षण प्राप्त किया.

    9. सोवियत संघ ने अपने मुक्ति आंदोलन और युद्ध में भारत के साथ पूर्वी पाकिस्तानियों का पक्ष लिया. दूसरी ओर, रिचर्ड निक्सन की अध्यक्षता में संयुक्त राज्य अमेरिका ने आर्थिक और भौतिक रूप से पाकिस्तान का समर्थन किया. अमेरिका युद्ध की समाप्ति की दिशा में समर्थन के प्रदर्शन के रूप में बंगाल की खाड़ी में एक विमान को तैनात करने के लिए गया था.

    10. युद्ध के अंत में, जनरल अमीर अब्दुल्ला खान नियाज़ी के नेतृत्व में लगभग 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों ने मित्र देशों की सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया. उन्हें 1972 के शिमला समझौते के हिस्से के रूप में लौटाया गया था.

    11. पाकिस्तान अपनी आधी से ज्यादा आबादी छीन चुका था, क्योंकि बांग्लादेश पश्चिम पाकिस्तान की तुलना में अधिक आबादी वाला था. इसकी सेना का लगभग एक तिहाई हिस्सा कब्जा कर लिया गया था. भारत का सैन्य प्रभुत्व बता रहा था, कि इसने जीत के लिए अपनी प्रतिक्रिया में संयम बनाए रखा.


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